शायद रोया है चांद
सुबह
टहलते हुए जा पंहुचा
मैं अपने खेतों में।
गेहूँ की पत्ती पर
सरसों के पत्तों पर,
धवल चमकती बूंदो को,
देख कर मैंने सोचा,
शायद रोया है चाँद ॥
दृष्टि उठाई मैने ऊपर,
नीले अम्वर की खिड़की से,
झांकता चाँद
शक्तिहीन पीला सा,
खोकर निज प्रकाश
सिमटा सा
कोने में दुबका ।
देख रहा था,
रबि का बढ़ता प्रताप ।।
निर्वल हुआ
वह रात का राजा
काल गति का परिणाम
निज दीन दशा पर
शायद रोया है चांद।
जय प्रकाश श्रीवास्तव पूनम