शायद ये कोरोना कुछ कहने आया है —आर के रस्तोगी
शायद ये कोरोना कुछ कहने आया है |
अपनो को अपनों से मिलाने आया है ||
लोग झूमे रहे थे अपनी अपनी मस्ती में |
कोई किसी को पूछ न रहा था बस्ती में ||
घूम रहे थे माल रेस्टोरेंट सिनेमा हाल में |
झूम रहे थे सभी अपने अपने ख्यालो में ||
वायरस ने ताला लगा दिया इन सब में |
तभी मानव कुछ समय निकाल पाया है ||
शायद ये कोरोना कुछ कहने आया है |
अपनों को अपनों से मिलाने आया है ||
गगन भी थक चुका था हवाई जहाज उड़ानों से |
साँस भी नही ले पा रहा था वह धुएँ के भरने से ||
शोरगुल था काफी हवाई जहाज की आवाजो से |
परेशान था वह परिचारिका व हवा जाबांजो से ||
सोच रहा था कैसे मुक्त हो वह इन आपदाओ से |
बस कोरोना वायरस ही साथ निभाने आया है ||
शायद ये कोरोना कुछ कहने हमसे आया है |
अपनों को अपनों से आज ये मिलाने आया है ||
आर के रस्तोगी
गुरुग्राम