शाम
शाम की सुरमई उजाले
में बहती स्याह रेाशनी
उतर जाती उदास रातों में
इक शोर के कैद से बाहर
निकल शांत पनघट पे रूकती,
लौटते विहग पत्तों की झुरमुट में
खो जाने को आतुरकलरव की
तेज ध्वनी से उद्घोष करती,
मानो संदेश प्रसारित करते,
थके राही गति को विराम दो
सुनहला सूरज मद्धिम हो सिंदूरी
पट पे कोमल शिशु सा मुस्कराता
मिचते थके नयनों को झपकाता,
बादलों की रंगीन छटा
परियों को सैर कराती बदले में
झित्नमिलाने तारों की बारात लाती,
धरती अम्बर मिल जाते
सपने सबके एक हो जाते
चेतना के नये द्वार दिखाते।
………पूनम कुमारी