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29 May 2024 · 1 min read

“शाम भी गुजर गई”

ढल गया दिन शाम भी गुजर गई
तबियत थी नासाज अब सुधर गई

ख्वाब अधूरे ख्वाहिशे भी अधूरी हैं
उफान पर थी नदी अब उतर गई

जिंदगी इसे ही कहते हैं शायद सभी
मौत करीब आई थी अब मुकर गई

जलाया था चिराग उम्मीदों का मगर
हवा चल रही थी लौ अब इधर-उधर गई

राणाजी उल्फत की बातें रहने दो
कल मिली थी वो जाने अब किधर गई

©प्रताप सिंह ठाकुर”राणाजी”
सनावद (मध्यप्रदेश)

Language: Hindi
30 Views
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