*शाम ढले यादों का अंबर आता है*
शाम ढले यादों का अंबर आता है
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शाम ढले यादों का अंबर आता है,
घोर उदासी में हो मन मर जाता है।
याद पुरानी दिल में छायी रहती है,
शाम सुहानी में भी वो घबराता है।
चढ़ी जवानी के दिन वो कैसे भूलें,
बात जुबानी सारी ही बतलाता है।
कौन भला वैरागी के दिन सह पाए,
बनी बनाई बातें मन बहलाता है।
कारगुजारी में है जीता मनसीरत,
साथ निभाने से वो क्यों घबराता है।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)