शादी का माहौल
रुनझुन की शादी ।
कुछ ऐसी मेरी शादी थी।
जब व्याह हमारा तय हुआ,
पास में बिल्कुल जाना था।
आंखों के सामने व्याह चाहती थी,
बस वो एक ही मेरी दादी थी।
कुछ ऐसी मेरी……..
न घोड़े थे, न गाड़ी थे।
बस बाराती ही बाराती थे।
न ढोलक थे, न बाजे थे।
फिर भी सब झूमकर नाचे थे।
जलेबी जलपान में खानी थी।
कुछ ऐसी मेरी……….
ना वस्त्र नए,ना घर नए,
पांव में जूती पुरानी थी।
क्या हाल बताऊं उस रात की
जब पिछौरी लगी पुरानी थी।
याद आती है कभी-कभी कि
कुछ ऐसी मेरी………..
ना पंडित थे, ना काजी थे,
हम दोनों खुद में राजी थे।
व्याह हमारा सम्पन्न हुआ
गवाह सभी बराती थे।
हर्षोल्लास रहा दृश्य वो,
कुछ ऐसी मेरी………
(सच्ची घटना)
Rishikant Rao Shikhare
28/06/2019