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11 Sep 2022 · 1 min read

कैसा हूं मैं

किसी दरख्त से लटके अकेले पत्ते के जैसा हूँ मैं,
मुसल्सल आँधियों में जूझती उस लौ–सा हूँ मैं।

है सब यहाँ, पर मेरा अपना यहाँ कुछ भी नहीं,
अपने ही घर में कुछ खोया, कुछ गुमशुदा हूँ मैं।

मेरे तौर-तरीकों से बड़े परेशान रहते सब आज-कल,
कहते हैं लोग कि कुछ ऐसा कुछ वैसा हूँ मै ।

मेरी मजबूती की देते हैं यहाँ लोग मिसालें बहुत,
अपनी ही खामियों का गढ़ा एक फ़साना हूँ मैं ।

ज़माना हुआ, नहीं पूछा किसी ने मुझसे हाल मेरा,
एक माँ ही हर रोज़ पूछती है की ‘कैसा हूँ मैं।।

©अभिषेक पाण्डेय अभि

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