*नज़्म* (श्रीमती इंदिरा गांधी जी की पुण्यतिथी पर )
जो गुल गुलशन की शोभा बढ़ा रहा है।
अफ़सोस बागवां ही उसको लुटा रहा है।।
वो दास्तान -ए- गुल भंवरे गा रहे है ।
वो गुल सारेजहां में “इंदिरा” कहा रहा है।।
एक वतन की खातिर खुद को मिटा डाला।
सीने पे खा के गोली जनाजा जा रहा है।।
उसकी चिता का फूल अभी मुस्करा रहा है।
शबनम को सहारा दे के मोती बना रहा है।।
वो लिख गईं है खून से खुद अपनी दास्तां।
फिर “अनीश” तू तो स्याही से से लिख रहा है।।
31/10/1984को लिखी पंक्तियां
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