शहीद बनकर जब वह घर लौटा
फोन की घंटी बजी।
पत्नी ने उठाई।
उधर से अफसोस जताते हुए,
एक आवाज आई।
हमारे सैनिक भाई शहीद
हो गये हैं।
पत्नी बेचारी बेसुध सी हो गई
वह क्या बोले समझ मे नहीं आ रहा था।
वह फोन रख वही बैठ गई।
बिटिया घर से बाहर खेलने गई थी।
और सासू माँ दरवाजे पर ही बैठी थी।
किसको कैसे बताएं समझ मे नही आ रहा था।
यह सब सुन जैसे उसको होश ही नहीं था।
इधर थोड़ी देर में बेटी की आवाज आई ।
माँ देखो तिरंगे में लिपटा दरवाज़े पर,
एक बॉक्स आया है।
लोगों ने उसे फूलों से खूब सजाया है।
माँ देखों बाजा वाला भी आया हैं।
देखो उसने कैसा धून बजाया है ।
ऐसा लग रहा है मानों
आज किसी की विदाई है ।
इतना कहते-कहते बेटी,
माँ को दरवाजे पर खींच लाई।
पत्नी को अभी भी कहाँ होश था।
लेकिन बॉक्स देखते ही उसकी आँखे भर आई।
वह फूट-फूट कर रोने लगी,
और बोली बेटी इसमें तेरे पापा हैं,
इतना सुनते ही बेटी बॉक्स की तरफ
दौड़ती हुई जाती है,
और जाके अपने पापा से लिपट जाती है।
लौट कर आ जाओ पापा
वह बार- बार चिल्लाती हैं।
आखिर उसकी उम्र ही क्या थी।
अभी-अभी तो आठ वर्ष की हुई थी।
पापा ने कहा था की जब आऊँगा
तब तुम्हारे जन्म दिन का तोहफा दूंगा।
वह तो अभी इसी इंतजार में बैठी थी।
उसे तो यह समझ में ही न आ रहा था।
यह क्या हो रहा है।
बेटी बोली पापा आज ही सुबह में तो
मैंने आपसे बात की थी।
आपने उस समय तो मुझे डाँटा नही,
फिर क्यो रूठ गये।
सबने उसे बताया की पापा शहीद हो गये हैं।
यह तुमसे नहीं रूठे है।
भला कोई इतनी प्यारी बेटी से
कोई रूठता है।
यह सुनकर वह चूप हो गई और
सबकी बात सुनने लगी।
अनायास ही बोल परी!
पापा आपके दुश्मनों से लड़ने मैं जाऊँगी
आपके दुशमन भी अब काँप जाएंगे
जब सरहद पर बेटे संग बेटी भी लड़ने जाएगी।
यह कहकर बेटी चूपचाप पापा के पैरों तले बैठ गई
और धीरे से बोली पापा मुझे आप पर गर्व है।
उधर एक कोने में पड़ी सैनिक की माँ
जो बेसुध पड़ी थी ।
धीरे से बोली मेरे लाल को क्या हो गया।
बस एक ही बात रट रही थी।
किसी ने बोला की दुश्मन देश के किसी आतंकी ने गोली चलाई है।
माँ ने सर उठाया और पूछा!
मेरे बेटे ने पीठ तो नहीं दिखाई ।
उसने छाती पर गोली खाई है ना।
सबने बोला नही- नहीं अम्मा,
उन्होंने तो वीरता का
एक अद्भुत मिसाल दिया हैं।
और कई दुशमनो को धूल चटा दिया है।
माँ ने बोला तब ठीक है,
कम से कम मैं शेर की माँ तो कहलाऊँगी।
दुशमन देश की तरह गीदर की माँ तो मैं नही कहलाऊँगी।
जो पीठ पीछे वार करता है।
माँ के आवाज मे
एक अलग सा तेज दिख रहा था।
इतने में माँ की आवाज फिर आई।
बोली हे ईश्वर, मुझे यहाँ से ले चलो ।
इसलिए नहीं की मेरा बेटा चला गया।
बल्कि इसलिए की मैं फिर से
इसी धरती पर जन्म लेकर ,
दूबारा अपने बेटे को जन्म दे सकूँ।
ताकि हमारे देश का एक भी
सैनिक कम न हो सके।
उधर बेसुध पड़ी पत्नी
जो अपने पति का चेहरा निहार रही थी
सहसा बोल उठी भले ही आप चले गये यहाँ से।
पर मैं अपने माँग की सिन्दुर न हटाउँगीं।
यह आपकी निशानी हैं।
इसे में जीवन भर लगाऊंगी।
सात जन्मों का वादा आपसे किया था।
एक जन्म में इसे कैसे तोड़ दूंगी।
मैं शहीद की पत्नी हूँ ।
न हार मांनूगी और न ही वादा तोडूंगी
फिर आप ही तो कहते थे कि शहीद की पत्नी
कभी विधवा नहीं होती हैं।
उसके सर पर हमेशा
तिरंगे का ताज होता हैं ।
मैं अपने सर से तिरंगे का ताज कैसे हटाउँगी?
आपकी बलिदानी पर गर्व हैं मुझे।
इसलिए मैं अपने माँग में
यह सिंदूर हमेशा सजाऊँगी
जय हिंद, जय जय जय हिंद।
~ अनामिका