शहीदों का परिहास
गांधी नेहरु वाली तड़पन दिखने लगी किताबों में ।
राजगुरु आज़ाद की बातें होती केवल ख़्वाबों में ।
भगत सिंह औ शेखर का परिहास बनाया जाता है ।
संसद में आतंकी बोल इतिहास बनाया जाता है ।
छलक रहे जो बोस के आँसू उसका भी प्रतिबोधन है ।
अब के चोरों को भी देखो नेता का सम्बोधन है ।
जगते रहना देश के वीरों संसद अब शर्मिन्दा है ।
झाँसी वाली तलवारें सुन लाडो अब भी ज़िन्दा है ।
हाथों में ले मधुशाला औक़ात पूछने आएँगे ।
शेखर ने क्या दिया हमें सौग़ात पूछने आएँगे ।
रख गर्दन पर शमशीरें तुम उनको भास करा देना ।
खप्पर वाली रणचण्डी का तुम एहसास करा देना ।
अरे नालायक़ बेशर्मों तुम हमें बताने आए हो ।
राजगुरु की बरसी पर तुम शोक जताने आए हो ।
भय छोड़ भयभीत करो उन भारत के ग़द्दारों को ।
जिसने छिन लिया है तेरे उन मौलिक अधिकारों को ।
धरती पुत्र ये भैंस चुराने वाले जब कहलाएँगे ।
भगत सिंह को आतंकी वो बोल बोल तड़पाएँगे ।
चौसर पर तुम रख ना देना उस केसर की क्यारी को ।
सहते देखा है कितने अपमान देश के नारी को ।
दिलों में उनके सिंहों की वो ख़ौफ़ ज़रूरी भरना है ।
राष्ट्रविरोधी हमलों से ना अब भारत को डरना है ।
छप्पन इंची वाले सिने से हमको उम्मीद बची है ।
जिसने दुश्मन की चौखट पर भारत की तस्वीर रची है ।
✍?✍?धीरेन्द्र पांचाल