शहीदी दिवस की गोष्ठी
कल तक खड़ी थी यहां जो प्रतिमा,
धूल अटी सी सूखी सी आत्मा,
सजावट कर इनको निखारा है ऐसा,
लदी फूलों की बेलों का नजारा है जैसा।।
नेता अफसर और समाजी जुटे थे,
फूलों की मालाओं से सब चेहरे ढके थे,
एक नेता ने पूछा यह किसकी है मूरत,
अफसर ने नकारा,ना देखी है सूरत।।
शहीदी दिवस है, आए करने नमन है,
करके याद शहीदों को पुष्प करते अर्पण है,
कवि गोष्ठी साथ लगी थी, सब ऊंची हस्ती के शायर,
कलम तोड़ रचना सुंदर सी,कविता छोड़ें बंपर फायर।।
सुखदेव,राजगुरु,भगत सिंह,उधम सिंह,शेखर आजाद,
गीत सरावा के सब गाकर सींच रहे उनके बागान,
सच्ची श्रद्धा “संतोषी” मान दो लाइन कविता पढ़कर,
मिल प्रेम भाव से देश संभालो, जो सोंप गए फांसी चढ़कर।।