शहर मत देखो
मिरा ग़ज़ल पढो बहर मत देखो यार
या’नी गाँव पूछो शहर मत देखो यार
उस इक जां जिससे इश्क लड़ाया मैंने
उसका असर समझो कहर मत देखो यार
आमने समाने देखो मिरे वहशत के किस्से तुम
आँखों देखा पे रहो झूठी ख़बर मत देखो यार
क़लम पकड़े हुए शा’इर भी सलाखें गिनते अब
उन्हें गुनेहगार कहो फ़क़त हुनर मत देखो यार
महबूबा की आँखों में छुपा होता है सब राज
नजरें बस ऊपर रखो लब क़मर मत देखो यार
हाँ इश्क का ही दूसरा सफ़र है बदन भी जाना
अरमां जगाओ फिर मन जिधर कहे उधर देखो यार
@कुनु