शहर के लोग
मेरे शहर मे जो रहते है लोग
अलग से वो सब लगते हैं लोग
दूसरो को नसीहत देते हैं लोग
खुद सब गलत करते हैं लोग ।
सड़को पर मरना छोड़ देते है लोग
लुटता हुआ देख मुॅह फेर लेते हैं लोग
छोटी सी बात पर जान ले लेते है लोग
मनुष्य रूप मे कभी जानवर लगते हैं लोग ।
ढूंढने से नही मिलते वो लोग
जिन्हे फरिश्ता कहा करते थे लोग
कौन सी दुनिया मे वो रहते हैं लोग
सिर्फ किताबो मे मिलते हैं वो लोग ।
जाने कब वापिस आयेंगे वो करामाती लोग
हमे फिर से इन्सान बनायेंगे जो लोग ।।
राज विग