“शहर की याद”
“शहर की याद”
गाँव में रहकर भी
शहर की याद आती है,
शहर की सरपट जिन्दगी
मुझको अब न भाती है।
ऐ शहर, तू ये बता
हर शय क्यों दौड़ता है,
दिन में बित्ते भर रहते
रात में क्यों फैलता है?
“शहर की याद”
गाँव में रहकर भी
शहर की याद आती है,
शहर की सरपट जिन्दगी
मुझको अब न भाती है।
ऐ शहर, तू ये बता
हर शय क्यों दौड़ता है,
दिन में बित्ते भर रहते
रात में क्यों फैलता है?