*शहर की जिंदगी*
भीड़ में भी तन्हाई है शहरों में
कहां गांव की हवा है शहरों में
सरपट दौड़ती है जिंदगी यहां
कहां आदमी की सुनवाई है शहरों में
सुनता है पड़ोसी की मौत की खबर भी खबरों में
पड़ोसी भी अजनबी होता है शहरों में
समाज तो बचा है बस अब गांवों में
अकेला हो गया है इंसान अब शहरों में
है जिन्दगी बहुत तेज़ शहरों में
जीना चाहते हो तो अब और न रहो शहरों में
जिन्दगी आराम नहीं करती एक पल भी यहां
दिन लगता है, रात को भी शहरों में
खालीपन हावी हो गया है अपनेपन पर
यही हर किसी की कहानी है शहरों में
आया था जो भी यहां बेहतर जिंदगी की तलाश में
खुद ही गुम हो गया है कहीं इन शहरों में
भावनाएं नहीं बची है इंसानों में
किसी को किसी की परवाह नहीं है शहरों में
कभी तो इंसान दम तोड़ देता है सड़कों पर, लेकिन
कोई मदद करने की ज़हमत नहीं उठाता शहरों में
बढ़ रहा है एक अजब चलन शहरों में
कुत्तों को पालना बन गया है स्टेटस सिंबल शहरों में
फुटपाथ पर सो रहे है इंसान यहां
और कारों में घूम रहे है कुत्ते शहरों में
एक दूसरे से आगे निकलने की होड़
हर वक्त चल रही है शहरों में
है समय की कमी इतनी, दोस्ती में, रिश्तों में
वो मिठास नहीं रह गई है शहरों में।