शहर का लड़का
वो थका हारा शहर का लड़का
वो क्या जाने श्रृंगार क्या है
न वो चहका चिड़ियों संग
न वो खिला फूलों के संग
न देखे बादल उसने
न सुनी बरखा की रिमझिम
न भागा वो नदी किनारे
न सागर में डूबा वो
न जाने वो महक बदन की
कैसे समझे सौंदर्य शरीर का
कैसे सोचो रिझाये वो ?
वो शहर का लड़का
जो पिसता है दिन रात अकेला
सिगरेट झोंकता
चाय सुड़कता
वो क्या जाने सम्बन्ध क्या हैं
प्यार क्या है
लेना क्या है
देना क्या है
वो तो चाकर है बस
बड़ी मशीन का पुर्जा है बस
जंग लगने से बचता फिरता
वो क्या जाने स्वास्थय क्या है
कंप्यूटर पे अंक जुटाता
पीठ दर्द , गर्दन को पकड़ता
वो क्या जाने
खुली हवा की खुशबु क्या है
जीवन के व्यापार में उलझा
तेरा मेरा सबका लड़का
वो शहर का लड़का !
शशि महाजन – लेखिका