“शहर अनजाना”
बड़ा दिलकश बड़ा रंगीन है, ये शहर मग़र अनजाना
ना इसमें बचपन है ना वो अपना घर, शहर अनजाना
ना वो पूनम का चाँद है,ना सुबहा की किरणें यहाँ पर
यूँ तो गुज़र जाता है यहाँ भी हर पहर,मग़र अनजाना
वो माँ का दुलार पिता का डर अब जुस्तजू बन गया है
कहने को यहाँ जुस्तजू है जुस्तजू में डर मग़र अनजाना
मशीन सी चल रही है ज़िन्दगी देखो बिना शोर किए
यहाँ हर क़दम पर आता है कोई नज़र, मग़र अनजाना
लेके आए थे कई ख़्वाहिशें इसमें उम्रभर बिताने की
बस चले जा रहें, चले जा रहा ये सफ़र मग़र अनजाना
इश्क़ के नाम पर ज़ुबा अटक जाती है इतने गिरे हैं हम
इस शहर में जिससे इश्क़ हुआ वो हमसफ़र अनजाना
___अजय “अग्यार