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22 Jan 2022 · 8 min read

शहरी युवाओं में अनुचित आक्रामकता

असुरक्षा, क्रोध और हिंसा जैसी अप्रिय भावनाएँ आज के शहरी युवाओं के मन में इतनी गहराई से क्यों बैठी हैं? ऐसा क्यों है कि युवा शहरी आबादी को इतनी बेचैन रातें झेलनी पड़ती हैं? किशोरों में नींद की दवाओं का प्रचलन क्यों बढ़ रहा है? युवाओं में बढ़ी हुई इस आक्रामकता का मुझे खुद प्रत्यक्ष अनुभव हुआ है।
लगभग एक महीने पहले की बात है , मैं अपने माता-पिता जी को नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से लेने जा रहा था क्योंकि वे मेरे गाँव से लौट रहे थे। रेलवे प्लेटफॉर्म पर जाने से पहले प्लेटफॉर्म टिकट खरीदना पड़ता था।
किसी भी जगह पर समय पर उपस्थित होना मेरी आदत है। आदतन, मैं ट्रेन के आने के एक घंटे पहले रेलवे स्टेशन पर पहुँचा। प्लेटफार्म टिकट लेने के लिए मैं लाइन में खड़ा हो गया और अपनी बारी का इंतजार करने लगा। इस तथ्य के बावजूद कि लाइन लंबी थी, चूकि टिकट मास्टर कुशल था और जल्दी जल्दी टिकट काट रहा था , मुझे उम्मीद थी कि शीघ्र ही मेरी बारी आएगी।
जब अन्य लोगो के साथ मैं धैर्यपूर्वक अपनी बारी का इंतजार कर रहा था, मैंने देखा कि कुछ किशोर , लाइन की कोई परवाह नहीं करते हुए सीधे टिकट काउंटर पर चले गए। वो मेरे सहित कई अन्य लाइन में खड़े हुए लोगों की अनदेखी कर रहे थे।
मैं और लाइन में खड़े हो अपनी बारी का इंतजार कर रहे अन्य लोग भी, उन किशोरों का विरोध करने लगे। इसके बावजूद वे कतार में शामिल होने के बजाय टिकट बूथ के पास हीं जबरदस्ती खड़े रहे ।
कतार में कई परिपक्व व्यक्ति थे जो अभी भी अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे। हालांकि, वे किशोर, जो कॉलेज के छात्र लग रहे थे, अपनी उदंड प्रवृत्ति का प्रदर्शन करते रहे।
हमारे पास जोर से चिल्लाने के अलावा कोई चारा नहीं था क्योंकि उन्होंने हमारी चेतावनी को नजरअंदाज कर दिया था। थोड़ी हीं देर में वे हमारे खिलाफ शारीरिक बल के प्रयोग की धमकी भी देने लगे। टिकट मास्टर ने अंततः उन्हें प्लेटफॉर्म टिकट प्रदान कर उन्हें रफा दफा किया । इस तरह इस मुद्दे को सुलझाया गया।
करीब एक महीने पहले ऐसा हुआ था। इस दौरान मैने युवाओं में इसी बढ़ी हुई आक्रमकता की लगातार अनुभूति की। युवा बाइक चालक स्पष्ट रूप से ट्रैफिक सिग्नल तोड़ रहे हैं। हाईवे पर बहुत तेज बाइक दौड़ना और ट्रैफिक अधिकारियों से भिड़ना आदि उनकी आदतों में शुमार हो चला है।
यदि कोई भी उन्हें रोकना चाहता था, उन्हें समझाना चाहता था तो उनके लिए असम्मानजनक भाषा का इस्तेमाल करना उनके लिए आम बात थी। आश्चर्य की बात ये थी कि उनमें वो गर्व की अनुभूति कर रहे थे।
इनके बारे में नींद न आना, अवसाद और यहाँ तक ​​कि आत्महत्या के विचारों के बढ़ने के बारे में बहुत सारी खबरें सुन रहा था। ऐसी खबर सुनकर मुझे हैरानी होती है।धीरे धीरे मैने उनकी आदतों के कारण पर ध्यान देना शुरू किया कि आज के शहरी किशोर आखिर इतने आक्रामक क्यों हो गए हैं, तो मेरी समझ में कुछ ज्यादा नहीं आया।
फिर इसकी चर्चा मैने पिताजी से की । उन्होंने समस्या को देखा और समझाया कि चीजें ऐसी क्यों हो गई हैं? इस तरह मुझे अपने पिता द्वारा ज्ञान प्राप्त हुआ, जो आज के शहरी युवाओं में अक्सर अनुपस्थित रहता है।
मेरे पिता के अनुसार गाँव में आज भी संयुक्त परिवार मौजूद हैं। एक बच्चा न केवल अपने माता-पिता से, बल्कि अपने चाचा, दादा और दादी से भी प्यार और स्नेह प्राप्त करता है।
न केवल बच्चे के परिवार में, बल्कि पड़ोस में भी अपनेपन की प्रबल भावना होती है। यहाँ तक ​​कि अगर गाँव में घर के सामने नाम और प्लेट दिखाई नहीं दे रहे हैं, तो आप आसानी से उस व्यक्ति को उसका नाम लेकर हीं खोज सकते हैं।
अगर किसी लड़के या बच्चे को कुछ हो जाता है तो पूरा का पूरा मोहल्ला सहायता को पहुँच जाता है। इस तरह के माहौल में एक लड़के में कभी भी प्यार और स्नेह की कमी नहीं होती है, जिसकी कमी इन महानगरीय युवाओं को होती है।
मुझे भी बचपन से ऐसी ही एक घटना याद आई। हिन्दी फिल्मों में मेरी गहरी दिलचस्पी थी। मैंने कभी भी फिल्म देखने का मौका नहीं छोड़ा। मैं फिल्म के पोस्टरों को देखने में बहुत समय बर्बाद करता था। बेशक, ऐसा करते हुए, मैं ये सुनिश्चित किया करता था कि मेरे पिता आसपास नहीं हो।
मेरे पिताजी ने एक बार मुझसे पूछा था कि मैं एक फिल्म के पोस्टर को इतने लंबे समय तक क्यों देख रहा था? मैं हैरान था कि उनको ये बात कैसे पता चल गई? बाद में मुझे पता चला कि हमारे एक पड़ोसी ने मेरे पिता को सूचित किया था। गांव में पड़ोसियों को भी अपनी जिम्मेदारी का पूरा एहसास रहता है।
घनिष्ठता की ऐसी भावना शहरी क्षेत्रों में मौजूद नहीं है। इस तथ्य के बावजूद कि नाम और प्लेटें व्यावहारिक रूप से हर नुक्कड़ पर पोस्ट की जाती हैं, शहर में अपनेपन की भावना बहुत कम होती है।
आपके पड़ोसियों पर क्या बीत रही है, इसकी किसी को परवाह नहीं होती है। उनके आसपास क्या हो रहा है, इसकी किसी को चिंता नहीं है। बल्कि अब सोशल मीडिया ऐप जैसे फेसबुक, ट्विटर और इंस्टाग्राम के जरिए सामाजिक गतिविधियों को व्यक्त किया जा रहा है। परन्तु सोसल मिडिया के दोस्त काल्पनिक हीं होते हैं या हो सकते है।
ग्रामीण क्षेत्रों में युवा पीढ़ी हमेशा बुजुर्गों का सम्मान करना जानती है। ग्रामीण युवक आकर बुजुर्गों के प्रति जिम्मेदारी की भावना से उतप्रोत होते हैं। जबकि इन महानगरीय युवाओं में भावनात्मक बुद्धिमत्ता की कमी होती है।
अधिकांश शहरी माता-पिता दोनों काम करना पसंद करते हैं। एक अकेले शहरी माता या पिता के लिए परिवार की आर्थिक प्रतिबद्धताओं का निर्वहन करना काफी कठिन होता है। माता और पिता दोनों हीं प्रायः कार्य करने हेतु दिनभर घर से बाहर हीं रहते हैं, नतीजतन, एक का बच्चा घर में अकेलापन महसूस करता है।
एक बच्चा जो एक फ्लैट में अकेले बहुत अधिक समय बिताता है वह भावनात्मक रूप से संतुष्ट नहीं होगा। ग्रामीण जीवन में शारीरिक गतिविधियाँ प्रचुर मात्रा में होती हैं, जबकि शहरी युवाओं में इसकी भरी कमी होती है। इस तथ्य के बावजूद कि किशोर आबादी बढ़ रही है, शहरों में बहुत कम खेल के मैदान हैं।
आज के महानगरीय युवाओं में, शारीरिक गतिविधियों की कमी और माता-पिता की गर्मजोशी और प्यार की कमी के कारण अनुचित आक्रमकता, अवसाद, उदासी और यहाँ तक ​​​​कि आत्मघाती विचारों का आना आम बात-सी हो गई है।
वे प्रतिकूल परिस्थितियों से निपटने के लिए अक्षम हैं। एक भी विफलता नर्वस ब्रेकडाउन का कारण बन जाती है। वे इतनी आसानी से ड्रग्स के आदी हो जाते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि वे भावनात्मक रूप से कमजोर हैं।
मेरे पिताजी ने आगे कहा कि हर मुश्किल का हल होता है। जिस तरह से एक व्यक्ति के विकास के लिए आर्थिक सम्पन्नता जरुरी है, उसी तरह मानसिक सम्पन्नता भी जरुरी है सम्पूर्ण विकास के लिए।
हमेशा अपने गृहनगर से जुड़े रहने की कोशिश करनी चाहिए। शहर में रहने वाले लड़के को अपने जन्मस्थान से अपने सभी रिश्तेदारों को पहचानना चाहिए। जब किसी व्यक्ति का जड़ अपने गांव से उखड़ जाता है, तो उसके भावनात्मक रूप से असफल होने की लगभग गारंटी होती है।
ध्वनि प्रदूषण कुछ अन्य और प्रमुख कारकों में से एक है जो महानगरीय बच्चों के बीच हिंसा में वृद्धि में योगदान दे रहे हैं । शहरों में रहने वाले किशोरों और युवाओं के पास सोने के लिए शायद ही कोई शांत जगह हो।
बढ़ती महानगरीय आबादी के बढ़ते दबाव के कारण बहुत से लोग छोटे क्षेत्रों में रहने को मजबूर हो रहे हैं। वाहनों का आवागमन लगभग रात भर जारी रहती है।
शहर में रहने वाले लोगों की दिन-रात की कार्य करने की आवश्यकता भी उसे गाँवों की तरह सोने से रोकती है। शहरों में सोने की उचित स्थल का अभाव होता है। शहरों में माता-पिता को इस मुद्दे का समाधान निकलना चाहिए और ऐसी जगह खोजने का प्रयास करना चाहिए जहाँ उनके बच्चे चैन की नींद सो सकें।
ऐसा नहीं है कि ग्रामीण युवा हर तरह से परिपूर्ण हैं। हो सकता है कि वे महानगरीय किशोरों की तरह शिक्षित न हों, सुसभ्य न दिखते हो । ग्रामीण किशोर आबादी की तुलना में, शहरी किशोर आमतौर पर अच्छा व्यवहार करते हैं और सभ्य दीखते हैं।
लेकिन यह शहरी युवाओं के लिए मददगार और हानिकारक दोनों है। ग्रामीण किशोरों में मौखिक आक्रामकता आम है। हालाँकि उससे वो यह अपनी नाराजगी और रोष की बाहर निकाल देते हैं । शहरी किशोर भले ही उपर से सभ्य दिखते हों, लेकिन वे मानसिक रूप सेशांत नहीं होते। उनके अंदर बहुत गुस्सा और हताशा पैदा होती है जो कि यदा कदा हीं बाहर निकलती है।
ये प्राकृतिक विशेषताएं हैं। प्रतिदिन प्रातः काल सूर्य उदय होना है। हर रात, चाँद दिखाई पड़ता है। दिन और रात कभी भी मिल नहीं सकते और आपस में लड़ भी नहीं सकते। समुद्र कभी अपने किनारे को पार नहीं करता। और ना हीं कभी किसी वृक्ष ने कभी आकाश में स्वतंत्र रूप से उड़ने का दावा किया है।
जल , अग्नि, वायु, मिट्टी, आकाश, ग्रह, उपग्रह, सूर्य, तारे, आकाशगंगाएँ, नदियाँ, सागर, वृक्ष, पर्वत, पशु , पंछी आदि सभी के अपने अपने गुण धर्म होते हैं और सारे एक सख्त अनुशासन और नियमों का पालन करते हैं।
प्रकृत्ति अनुशासन को प्रश्रय देती है तो वहीं एक किशोर हर चीज से मुक्ति चाहता है, चाहे वह किसी भी तरह का नियंत्रण, अनुशासन, नियम, व्यवस्था, या विनियमन आदि हो। एक किशोर जिन हार्मोनल और जैविक परिवर्तनों से गुजरता है, वह उसे विद्रोही बनाता है।
समस्या न केवल किशोरों में बल्कि माता-पिता के लिए भी है, जो चाहते हैं कि उनके किशोर जल्द से जल्द जीवन की बारीकियों को समझें।
एक किशोरी की स्थिति को समझने के लिए अभिभावकों के पास पर्याप्त समझदारी हैं, और न ही एक किशोर अपने माता-पिता की अपेक्षाओं का अनुमान लगा सकता है। एक किशोर कल्पना के दायरे में रहना पसंद करता है, जो उसे वास्तविक दुनिया से दूर रखती है।
वह अपने कपड़े बदलने और आईने के सामने समय बर्बाद करने में बहुत अधिक समय व्यतीत करता है, और आप तब तक धैर्यपूर्वक प्रतीक्षा करना होता है जब तक कि वह यह समझने की क्षमता विकसित नहीं कर लेता कि उसके आसपास क्या हो रहा है।
किसी भी तरह का अनुशासन उसे दबाव में रखता है। वह उन्हें विभिन्न प्रकार के बंधनों के समान मानता है। ऐसे परिदृश्य में एक किशोर और उसके अस्तित्व के बीच संघर्ष अपरिहार्य है। यह संघर्ष उसके स्वभाव के कारण अपरिहार्य हो जाता है, और इसे समझना चाहिए।
धैर्य से काम लेना ही इस समस्या का समाधान है। एक किशोर एक बीज की तरह होता है जिसे एक पेड़ बनने में समय लगता है। एक किशोर के लिए एक जिम्मेदार व्यक्ति के रूप में परिपक्व होने के लिए सही समय आने तक का इंतजार करना जारी रखना चाहिए।
जिस तरह एक छोटी कली को फूल बनने में समय लगता है, जिस तरह मौसम के तमाम थपेड़ों को सहना पड़ता है ठीक उसी प्रकार एक किशोर को एक समझदार इंसान बनने के लिए उसे जीवन के प्रतिकूल और अनुकूल परिस्थितियों के परीक्षणों से गुजरना अवश्यम्भावी है।
हमें शहरी किशोर आबादी को नियमित व्यायाम में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए ताकि उन्हें आक्रामकता से बाहर निकाला जा सके। शारीरिक क्रिया कलाप किसी भी व्यक्ति के मन में दबी हुई भावनाओ को मिटाने का कार्य करती है।
इसके अलावा माता-पिता को अपने बच्चों के साथ क्वालिटी टाइम बिताना सीखना चाहिए। आखिर वे किसके लिए इतनी मेहनत कर रहे हैं? अपने बच्चे को आर्थिक रूप से सुरक्षित रखना आवश्यक है, लेकिन भावनात्मक रूप से अपने बच्चे की रक्षा करना भी उतना ही महत्त्वपूर्ण है। सर्वांगीण विकास के लिए सर्वांगीण प्रयत्न की आवश्यकता होती है।
अजय अमिताभ सुमन: सर्वाधिकार सुरक्षित
यह प्रकृति कुछ अनुशासन, कुछ नियमों के एक समूह द्वारा शासित होती है, और इन नियमों का पालन किया जाना चाहिए। उदाहरण के लिए, यदि आप अपने हाथ से आग को छूते हैं, तो आपकी उंगलियां जल जाएंगी। यदि आप तैरना और पानी में गोता लगाना नहीं जानते हैं, तो आप डूब सकते हैं। यह जीवन एक सख्त व्यवस्थित पैटर्न और अनुशासन द्वारा शासित होता है।

Language: Hindi
Tag: लेख
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