शशि शीतकर
आसमान मे भरी चांदनी
हंसता है आकाश रातभर
दौड लगाता शशि शीत रात मे
कर्म कर रहा जाग जागकर
सजग सुनहरा आसमान है
पर सन्नाटा है निशीथ मे।
सुबह के आने तक दौडा है
मुस्काता है अपनी जीत मे
औषधि के हे जीवन दाता
उपमा देते रहे गीत मे।
धन्य हो रहा नभ धरा भी
मुदित रहा चकोर प्रीत मे
शीतलता के गुण महान है
सफलता का मूल प्रान है।
सिर पर शिव धारण करते है
चन्द्रशेषर शिव भगवान है।।