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16 Feb 2024 · 1 min read

शलभ से

भोले शलभ! अब तुम मचलना छोड़ दो।
दीप पर क्या असर अब जलना छोड़ दो।
क्यूं विवश हो पहुॅंच जाते उसके द्वार ?
क्या दबा सकते नहीं मन की मनुहार ?
मन पर अब ऐतबार करना छोड़ दो।
भोले शलभ! अब तुम मचलना छोड़ दो।
जीत की चाह नहीं गले लगाते हार ?
क्यूं गूंथते हो तुम‌ प्रीत का यह तार ?
ऑंसूओं में गम बहाना छोड़ दो।
भोले शलभ! अब तुम मचलना छोड़ दो।
दीपक जल करता जग-तम का संहार।
पर शलभ! तेरा जलना लगता निस्सार।
तुम व्यर्थ ही अग्नि में दहना छोड़ दो।
भोले शलभ! अब तुम मचलना छोड़ दो।
समझा ना अब तक वह तेरे उद्गार।
फिर क्यूं सजाते हो भावों का संसार ?
स्वर्णिम स्वप्न-महल बनाना छोड़ दो।
भोले शलभ! अब तुम मचलना छोड़ दो।

—प्रतिभा आर्य
चेतन एनक्लेव,
अलवर(राजस्थान)

Language: Hindi
1 Like · 459 Views
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