शर आर हो या पार हो
!! श्रीं !!
शर आर हो या पार हो
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कुछ कीजिये हल्का सभी का तनिक सा तो भार हो ।
कम हो घुटन मुख पर हँसी उर में भरा मृदु प्यार हो ।।१
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धीमे चले चलता रहे तो लक्ष्य आ जाता निकट ।
जो जिंदगी से जूझता डरता न चाहे हार हो ।।२
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मौसम बड़ा बेदर्द है कुछ लोग ठिठुरें रात में ।
उस पर हमारा साथ उनके शुष्क क्यों व्यवहार हो ।।३
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ऐसी चली बिगड़ी हवा सबके उड़ाये होश हैं ।
बाजार ही जब बंद हो कैसे कहो व्यापार हो ।।४
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है कौन बैठा घात में लूटे हमारा बाग ये ।
उसको सबक ऐसा मिले शर आर हो या पार हो ।।५
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शासन सुशासन वह लगे कल्याण जन-जन का करे ।
सुंदर हमारा देश है सुंदर यहाँ सरकार हो ।।६
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तू दो कदम अपने बढ़ा मैं भी बढाऊँ दो कदम ।
मिट जाय सारा फासला महका हुआ संसार हो ।।७
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महेश जैन ‘ज्योति”,
मथुरा !
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