शर्म
शर्म
“अरे कहाँ गए आप,सुनिए ना,देखिए मुझपर यह ड्रेस कैसी लग रही है,मैं आज यही पार्टी पर पहनूँगी”उसने कहा और उन्हें दिखाने लगी।
“नहीं,नहीं यह मत पहनना।वहाँ हमारी क्या इज्जत रहेगी? कुछ हटकर पहनो।आज की जेनरेशन टाइप।ये बहुत ओल्ड है।” उन्होंने कहा।
“तो फिर आप ही बताईये,इस जीन्स पर ये रेड टॉप कैसा रहेगा?”
“बिलकुल वाहियात” उन्होंने गन्दी शक्ल बनाते हुए कहा।इससे तो अच्छा है तुम पार्टी में आओ ही मत।
“आप भी ना,अगर आपको मुझे ले जाने से शर्म लगती है तो मत ले जाओ।”उसको गुस्सा आ गया।कपड़े पटक दिए।
“अरे,मैं तो मजाक कर रहा हूँ डार्लिंग,तुम ऐसा करो।वह हाफ ब्लेक स्कर्ट और उसपर वाइट टॉप पहन लो।” उन्होंने मनाते हुए कहा।
“लेकिन वह ड्रेस तो अब छोटी हो गई है।स्कर्ट और टॉप दोनों ऊंचे होते है मुझे।इसे कैसे पहनूँ।”
वह भीतर गई और पहन कर आई।और कहने लगी- “आप ही देखिए,कैसी लग रही हूं?”
“वाह,ऑसम लग रही हो तुम,यही ड्रेस पहनों आज की पार्टी में…मन करता है किस्सी कर लूं।”
उन्होंने कहा और उसकी तरफ जाने लगा।
“शर्म नहीं आती आपको,कोई देख लेगा?”
“कैसी शर्म?”
इति
~ परमार प्रकाश