शर्म हया खो गई
*** शर्म हया खो गई ****
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शर्म हया कहीं पर खो गई,
कर्म दया जमीं पर सो गई।
नित्य रहें सदा सब देखते,
धर्म-वहम रहम को धो गई।
खरी खबर खफ़ा खो खेलती,
अस्मिता गिरी बुझ लौ गई।
समय मिला जगह हर लूटते,
हस्त हुए पस्त झट वो गई।
शरीफ़ सी मनसीरत खड़ी,
इस्मतफरोश़ भारी हो गई।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)