शर्म आती क्या राजधानी को???
#उरी के शहीदों को समर्पित…
कौन भूलेगा इस कहानी को
शहीदों को, उनकी क़ुर्बानी को।1।
सुर्ख़ केशर है शहीदों के खूं से
ना भुलाना है खाद-पानी को।2।
बूढ़े माँ-बाप, लाचार बीवी-बच्चे
कौन संभाले इस निशानी को।3।
उनके मांदों में घुस हलाल करो
करें वो याद दादी-नानी को।4।
बहुत हुआ, बर्दास्त अब नहीं होता
रोको ना हिन्द की जवानी को।5।
शर्म आती क्या इस शहादत पे
इस दिल्ली को, राजधानी को?6।
भूगोल, इतिहास भी बदल डालो
देश तैयार है नई कहानी को।7।
-आनंद बिहारी, चंडीगढ़ (19.09.2016)
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