शर्मिंदा हूँ मैं
साँस चल रही है और ज़िंदा हूँ मैं
गैरों को वक़्त देकर शर्मिंदा हूँ मैं
जो मुझे अबतक समझ नहीं पाए हैं
उनकी खटकती नज़रों में निंदा हूँ मैं।।
घुट-घुट कर जी रहा हूँ और ज़िंदा हूँ मैं
उजड़ गए आशियाँ फिर भी परिंदा हूँ मैं
जो मुझे समझ गए है अच्छी तरह से
उनके प्यार भारी नज़रों में चुनिंदा हूँ मैं।।