” शर्मसार वर्दी “
क्या यूपी क्या राजस्थान
क्या दिल्ली क्या महाराष्ट्र
क्या जम्मू क्या हिंदुस्तान ,
सब जगह बस हैवान हैं
और जनाब इन सबके हाथों
जनता की कमान है ,
उस बेटी की हृदय विदारक चीत्कार
उसकी बद्दूआ उसकी मौत
देखना उजाड़ देगी तुम्हारा संसार ,
वो संसार जिसे तुमने सजाया है
ऐसी ना जाने कितनी बेटियों के
नुचे शरीर को जला कर बनाया है ,
इंसान हो भी की नही तुम सब
वर्दी पहनते ही भेड़िये कैसे हो जाते हो
अपना लिया शपथ याद नही आता है तब ?
नही सो पायेगा कभी उस बेटी का परिवार
फिर तुम कैसे सो पाओगे
कभी तो उतरेगा इस वर्दी का खुमार ,
उपर वाले की लाठी में आवाज नही होती
इसका ये मतलब मत समझना की
वो लाठी तुम जैसों पर वार नही करती
अरे ! उस वार से तो डरो
आईना तो होगा घर में तुम्हारे
ज्यादा नही थोड़ी तो शर्म करो ,
लगता है वो पूरी बेच आये हो फर्ज के साथ
अपने रिश्तों को जैसे हिफाजत से सहेजा है
वैसे ही सहेजते पकड़ पराई बेटियों का हाथ ?
बिना शरीर ये वर्दी जब तुम्हें टंगीं मिलती है
बेदाग – साफ , शान और सम्मान से तनी
बदन पर आते ही तुम्हारे दागों से सन जाती है ,
सिर्फ अपनों की ही रक्षा की कसम खाई है
ज़रा पूछो अपनी वर्दी से ये भी बोलेगी की
इसको भी तुम्हारा बदन ढकने में शर्म आई है ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 02/10/2020 )