शरीर ( व्यक्ति )।
आज भी ये शरीर अद्भूत ,अचंभा हैं
मुनि से लेकर विज्ञान तक ,
रहस्यमय खजाना है।
अज्ञात से ज्ञात तक,
अज्ञान से प्रकाश तक
तन – मन लिए ,
पंचभूत मानव-मानवी
इन्द्रियों में सिमट गयी ।
बिखर कर आज
गहता मानव-मानवी सार ।
आदम हों या हौंवा ,
मनु हो या सतरूपा
मनुष्य के शरीर विज्ञान,
विभिन्न आयामों के कर्मों,धर्मों में
मानव – मानवी विकास की लेखा हैं।
तन से तानव तक,
जीवंत से मौत तक
शरीर उद्भूत अचंभा हैं।_ डॉ. सीमा कुमारी ,बिहार (भागलपुर ) स्वरचित रचना हैं दिनांक18-4-021 जिसे आज
प्रकाशित कर रही हूं।