शरद पूर्णिमा
शरद पूर्णिमा पर सृजित
गीतिका
छंद-गीतिका
श्वेत चंदा चांदनी अरु ये खुला आकाश है।
आ गया मौसम सुहाना हो रहा आभास है।
पूर्णिमा है ये शरद की शीत की दस्तक हुई,
वक्त अब अच्छा रहेगा हो रहा विश्वास है।
काल ने हमको छला है बन करोना सी बवा,
आज लेकिन दिख रहा सामूल इसका नाश है।
श्वेत हंसों ने कही है बात कोई कान में,
खिलखिलाती चांदनी में जीत का अहसास है।
बात ये विश्वास की है ऐ अटल तुम भी सुनो!
मान लो तो ये हमेशा हर घड़ी उल्लास है।
?अटल मुरादाबादी ?