शरद पूर्णिमा का चाँद
शरद ऋतु का चाँद
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आज शरद ऋतु का चाँद
उतर आया है मेरें आँगन में
भर कर अमृत की बूंदें
उड़ेल दिया हैं गागर से
सराबोर शीतल हो आया
अतृप्त जीव जगत का सारा
बदन शीतल संतृप्त हो आया
मेरा भी झीनी चादर में,
शरद चाँद की अमृत रस में ही
वाल्मीकि भी पाए अवतार
जो धवल चाँदनी में रच डाले
आगम निगम रामवतार
जिसका शब्द वेद ऋचा सम
पाया जगत में सत्य आधार
वहीं चाँदनी बरस रहीं हैं
आज अमृत सदृश नाना प्रकार,
मनमोहन की मुरली छेड़ी
आज सुरीली मधुर धुन तान
सुनकर ग्वाल गोपियाँ जग छोड़ी
आई वृंदावन में हज़ार
प्रेममयी रस प्रेम माधुरी संग
माधुर्य हुई यमुना की धार
छिड़के सब पर अमृत प्रेमरस
संग रचाये आज महारास,
चाँद की अमृत बूंद पाने को
सोया है महलों के छत पर
चाँद की सारी अमृत वर्षा
होगी क्याउसके ही ऊपर
सारा दिन जो घर के अंदर
रहता हैं बस पैर पसार
उसी आलसी निकम्मे को
चाहिए अमृत बूंद कुछ आज,
सुखी रोटी भाजी खाकर
कलुआ निकला छोड़ के टाट
चाँद को देखा रोज़ की भाँति
सोया ज़मीं पर लूंगी डाल
उसकी धड़कन सांसों को सुन
कर, उससे बोले धरती चाँद
मेहनत से तू स्वस्थ सुखी हैं
तुझें नहीं हैं अमृत की चाह ।।
©बिमल तिवारी “आत्मबोध”
देवरिया उत्तर प्रदेश