शरद जोशी (एक अनूठे व्यंग्य रचनाकार)
शरद जोशी का जन्म 21 मई 1931 को उज्जैन में हुआ था। अपने आप में वे अनूठे व्यंग्य रचनाकार थे। शरद जोशी जी पहले व्यंग्य नही लिखते थे। वे अपनी आलोचकों से खिन्न होकर व्यंग्य लिखना शुरू किए।
उन्होंने एक जगह लिखा है- ” लिखना मेरे जीवन जीने की तरकीब है। इतना लिख लेने के बाद अपने लेख को देख मैं यही कह पाता हूं कि चलो इतने वर्ष जी लिया।
यह नही होता तो इसका क्या विकल्प होता अब सोचना कठिन है। लेखन मेरी निजी उद्देश्य है।
शरद जी की कविता ‘जो हम मां है।
जो हम माँ हैं’ (कविता)
एक बनारस साज़िश पहुँचे।
स्टेशन पर उतरे ही थे कि एक लड़का दौड़ता हुआ आया।
‘मामाजी! ‘माँजी!’ – लड़के ने लपक कर चरण छुआ।
वे पहताने नहीं। बोले – ‘तुम कौन?’
‘मैं माँगता हूँ। आप मुझे नहीं पहचान रहे हैं?’
‘मुन्ना?’ वे देखें।
‘हां, निश्चिंत। भूल गयी आप माँजी! खैर, कोई बात नहीं, इतने साल भी तो हो गए।’
‘तुम यहाँ कैसे?’
‘मैं देखता हूँ।’
‘अच्छा।’
‘हाँ।’
मामाजी अपने भांजे के साथ घूमने लगे।
चलो, कोई साथ तो मिला। कभी यह मंदिर, कभी वह मंदिर।
फिर पहुँचे गंगाघाट। सोचा, लें ना।
‘मुन्ना, ना लें?’
‘जरूर नाहा मामाजी! ‘बनारस आए हैं और नहाएंगे नहीं, यह कैसे हो सकता है?’
मामाजी ने गंगा में खोजी। हर-हर गंगे।
बाहर निकला तो सामान गायब, कपड़े गायब! लड़का… प्रेमी भी भूल गया!
‘मुन्ना… ए नन्हे!’
मगर इंजीनियर वहाँ हो तो मिले। वे प्रतिपक्ष लपेटे हुए हैं।
‘क्यों भाई साहब, आपके प्यारे को देखा है?’
‘कौन सा?’
‘वही हम माँ हैं।’
‘मैं समझा नहीं।’
‘अरे, हम मामा तो वो हैं।’
वे लाइसेंसी यहाँ से वहाँ दौड़ते रहे। असली नहीं मिला।
भारतीय नागरिक और भारतीय वोटरों के रिश्ते हमारी यही स्थिति है मित्रो!
चुनाव के सीज़न में कोई भी आता है और हमारे स्टेज में गिर जाता है।
मुझे चुनाव के उम्मीदवार के रूप में आलोचना न करें।
होने वाला एम.पी. मुझे नहीं बताता?
आप पेजतंत्र की गंगा में विकल्प चाहते हैं।
बाहर जाने पर आप देख रहे हैं
कि वह जो कल आपका चरण छूता था,
आपका वोट लेकर चला गया।
एंटरटेनमेंट की पूरी पेटी लेकर आया भाग।
विपक्ष के घाट पर हम अनारक्षित लपेटे हुए हैं।
सबसे पूछ रहे हैं – क्यों साहब, वह आपको कहां नजर आया?
अरे वही, जिससे हम वोटर्स हैं। वही, जिससे हम माँ हैं।
पाँचवें साल इसी तरह के नए नाम सामने आते हैं।
जय हिंद