शरद्वान
बचपन जिसका बाणाे संग हुआ, बाणाे मे ही बीता,
शरद्वान नाम उसका गाैतम जिसके पिता,
धनुर्विद्या मे थी अद्भुत लय,
सुरपति इन्द्र काे भी था भय,
आई अप्सरा जानपदी करने ध्यान भंग,
सुंदरता से माेह लिया,किया अपने संग,
हुआ धरा पर कृपा कृपी का आगमन,
छाेड़ उन दाेनाे काे ममता का हुआ गमन,
आखेट खेलते पड़ी शांतनु की नजर,
लाये संग राजभवन,बीता बचपन हस्तिनापुर,
कृपाचार्य
हस्तिनापुर के कुलगुरु बने, कहलाये कृपाचार्य,
कृपी का जीवन साथी बना द्राेणाचार्य,
काैरवाे के पक्ष से वीर कृपाचार्य लड़े,
राजभवन का कर्ज चुकाने धर्म से भिड़े,
चिरंजीवी था ये वीर,
धनुर्विद्या में था महावीर,
एक साथ कर सकता था, साठ हजार का संहार,
वीर शरद्वान का पुत्र था, अद्भुत थी उसकी मार,
समर के बाद भी रहा बनकर पांडवाे का कुलगुरु,
अभिमन्यु सुत परीक्षित काे दिया ज्ञान,रहे अटल वंश कुरु,
।।।।।जेपीएल।।।