शरदपूर्णिमा
शरदपूर्णिमा
“सोलह कलाओं से परिपूर्ण चाँद आता हैं
शरद पूर्णिमा का चाँद स्वेत धवल होता हैं
दिव्य अमृत रश्मि में स्नान करती रश्मियां हैं
होती औषधीय गुणों की खान उसकी किरणे हैं”।
एक पुरानी कहानी प्रचलित हैं कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नाम के राक्षस का वध किया था। उसके वध के बाद सभी देवी-देवताओं ने काशी में मिलकर खुशी मनाई थी।तभी से काशी में कार्तिक पूर्णिमा के दिन देव दीपावली मनाने की परंपरा चली आ रही है।
सनातन धर्म के अनुसार यूं तो वर्ष में पड़ने वाली प्रत्येक पूर्णिमा तिथि का महत्व है, परंतु आश्विन मास में पड़ने वाली पूर्णिमा तिथि का विशेष महत्व माना जाता है। इस मास की पूर्णिमा तिथि को शरद पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। प्रत्येक पूर्णिमा तिथि की तरह इस दौरान चंद्रमा पूर्ण रूप से आसमान में दिखाई देता, जिस कारण इसे पूर्णिमा कहा जाता हैै। इस दिन खीर बनाकर रात भर चाँदनी रात में रखते हैं व सुबह इसको खाते है मान्यता हैं कि यह खीर खाने से आंखों की ज्योति बढ़ती है।क्योंकि रात भर चाँद की किरणें खीर पर पड़ती हैं।इस दिन धरती जैसे दूधिया रोशनी में नहा रही होती है ऐसा प्रतीत होता है। माना जाता है कि इस दिन चंद्रमा की किरणों से अमृत की बरसात होती है,
इस बार शरद पूर्णिमा १९ अक्टूबर दिन मंगलवार को पड़ रही है, जिस दौरान देवी लक्ष्मी की विधि वत रूप से पूजा अर्चना की जाती है। हिंदू धर्म के ग्रंथों में बताया गया है कि इस दिन आकाश से अमृत वर्षा होती है, तथा इसी दिन से ही मौसम बदलता है यानि सर्दियों का आंरभ होता है। ये दिन खासरूप से मां लक्ष्मी को समर्पित, जिस कारण इनकी पूर्णिमा की रात्रि को पूजा की जाती है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन यानि आश्विन मास की पूर्णिमा तिथि को देवी लक्ष्मी की समुद्र मंथन से उत्पत्ति शरद पूर्णिमा हुई थी। जिस कारण इस तिथि को धन-दायक माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन देवी लक्ष्मी धरती पर विचरण करती हैं। इस दौरान जो लोग रात्रि में जागकर इनका पूजन व जागरण करते हैं, उन पर इनकी कृपा बरसती हैं और धन-वैभव प्रदान करती हैं।
इस दिन चंद्रमा अपनी पूर्ण कलाओं के साथ होता है और पृथ्वी पर चारों चंद्रमा की उजियारी फैली होती है।
“शरद पूर्णिमा का चाँद आएगा
लेकर अपनी शीतल चाँदनी संग
धवल दुग्ध सी रोशनी में उमंग संग
व्योम,धरा आज उत्साहित रोशनी संग”।
डॉ मंजु सैनी
गाज़ियाबाद