शब्द
कभी कभी कागज़ पर,
मन की बातें लिख जाता हूँ।
जो कह न पाऊं,
लिखकर यहाँ बतलाता हूँ।।
लिखकर जताने का भी,
अलग सबब हैं।
इसलिए सब कुछ,
लिख जाता हूँ।।
हो मौन अधर,
या नैन भरे।
शब्दों के ज़रिये पाने का ,
ये जतन कर पाता हूँ।।
तेरी नाराज़गी,
या ख़ामोशी को समझ न पाता हूँ।
इस लेखनी से उस अहसास को पाने की,
झूठी कोशिश कर पाता हूँ।।
जैसी भी हो,
मेरी हो तुम।
ये कहने में,
थोड़ा सकुचाता हूँ।।
अपने अधरों के लफ्ज़ो को,
कागज़ पर शब्दों में पिरो जाता हूँ।
कभी कभी कागज़ पर,
मन की बातें लिख जाता हूँ।।
डॉ महेश कुमावत