शब्द-२
तुम्हारी ताकत,
चमक दमक,
रुतबे
का बखूबी
अहसास है मुझे
ये भी सच है
आज जो कुछ
भी हूँ
तुम्हारी ही बदौलत हूँ।
पर सदियों के तजुर्बे के
बाद भी,
जब तुम खामोश और
बेबस दिखते हो।
तो यही लगता है
संवेदनायें आज भी
तुम्हे,
यदा कदा बेवकूफ
बना ही जाती हैं।
शायद तुम्हे भी
अपनी ये कमजोरी
मालूम तो होगी ही!!!
फिर शब्द
से निःशब्द
होकर ,
ये मौन
तुम्हारी नियति
बन जाती है!!