शब्द रूप
कविता मेरी लेखनी से
फूट पड़ती है स्वतः
जाने अनजाने प्रभु कृपा से
खुद ही निकल आते हैं भाव
मन के जैसे किसी सूखे वृक्ष मेँ
अचानक कोँपले उग आए
हो ऐसा की घने से जंगल में
यकायक कटीली झाड़ियों से
जंगल का भर जाना ….
वैसे ही मेरी कविता पुनः ही
शब्द रूप ले लेती हैं स्वतः ही
बिना कुछ बोले बिना किसी वजह ही
किसी भूमिका को जाने बिना ही
मन मे सजा अपने शब्दो को अन्तःकरण में
उकेर देती हूँ पन्नो पर अपनी लेखनि से
ओर पाती हूँ खुद में आत्मतृप्ति सी
लेखनी चलती हैं मन मे सजे शब्दो पर
ओर उकेर कर प्रस्तुत करती हैं आपके
सन्मुख अपने भाव शब्दो मे आपकी “मंजु”
डॉ मंजु सैनी
गाजियाबाद