@@शब्द भूल गएँ हैं गीत@@
प्रेम पिघल जाता है जब,
वसुधा पर दुःख अनन्त हों,
रश्मि यहाँ जब रही अकेली,
सतरंगी संगीत वह कहती,
क्षीण-क्षीण जब हुआ हृदय है,
रहा न निकट कोई भी मीत,
शब्द भूल गएँ हैं गीत।।1।।
निरख रहे हैं डाल-डाल पर,
पक्षी पौधे की छाया में,
धूल उड़ रही हल्की हल्की,
मानव की क्षणभंगुर काया में,
नयन भी अब शिथिल पड़ गए,
किसे दिखाऊँ झूठी प्रीति,
शब्द भूल गएँ हैं गीत।।2।।
चली आ रही रेखा पर जब,
दग्ध हो उठी क्षुद्र कामना,
मैं, मेरा और तेरा सब कुछ,
भूल गए जब हुआ सामना,
जो अपने थे दूर हट गए,
यह है जगत की रीति,
शब्द भूल गएँ हैं गीत।।3।।
जो सच है वह दूर पड़ा है,
पर उनसे अन्तः करण जुड़ा है,
स्मित हास्य जब मात्र प्रकट हो,
वाह वाह क्या रूप बड़ा है,
स्मरण केवल उनका होता है,
सिखलाते जो जीवन संगीत,
शब्द भूल गए हैं गीत।।4।।
@अभिषेक पाराशर………..