शब्द नाग बनकर डस लेते है
शब्द नाग बन कर डस लेते समझलो जुबाँ से
इतना तो कोई घायल नहीं करता तीरों कमान से
कहने को सारा सारा संसार अपना सा लगता है
बेपनाह आखँ में पानी आया ये तेरे मेरे दरम्यां से
सदियां गुजर गई पर ये खत्म क्यों नहीं होता है
मिलने पर दूरियां यहाँ भरोसा क़ातिलों के बयाँ से
कब उतरेंगे इस शहर में चेहरों पर लगे और चेहरें
पानी भी सर पर आ चढ़ा अब ख़तरे के निशाँ से
इश्क दुरी घटाता तो नजदीकियों से घबराहट क्यों
खामोश क्यों हो ज़रा जवाब दो सुन मेरी दास्ताँ से
फर्क मेरे और तुममें सिर्फ इतना ही होगा ऐ इश्क
साथ तुम थे सफर कट गया नहीं मुश्किल थकान से
खुद को बेच डाला तूने कैसे ओ मेरे खुदा जाकर कैसे
मन्दिर मस्ज़िद बनी हुई तेरी दुकान से इस दुकान से