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18 Jun 2021 · 2 min read

शब्द: गज़ब

शब्द: गज़ब

गज़ब शौर्य की धनी झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की पुण्य तिथि पर मेरा नमन??

भारत भूमि को गौरवान्वित करने वाली झांसी की रानी वीरांगना लक्ष्मीबाई वास्तविक अर्थ में आदर्श वीरांगना थीं।गजब की हिम्मत थी उनमें। अपने पवित्र उद्देश्य की प्राप्ति के लिए वह सदैव आत्मविश्वासी, कर्तव्य परायण, स्वाभिमानी और धर्मनिष्ठ थी। सच मे ही गजब की बहादुर थीं वीरांगना लक्ष्मीबाई।हम नारियों का आज भी गौरव हैं रानी।
लक्ष्मीबाई का जन्म काशी में १९ नवंबर १८३५को हुआ। लक्ष्मीबाई अपने बाल्यकाल में मनुबाई के नाम से जानी जाती थीं। राजा गंगाधर राव से रानी का विवाह हुआ था।एक पुत्र की प्राप्ति भी हुई और ये खुशी ज्यादा चल नही पाई और चार महीने बाद ही बच्चे की मृत्यु हो गई
सारी झांसी शोक सागर में निमग्न हो गई। उसके बाद एक पुत्र को गोद लिया ओर उसका नाम दामोदर राव रखा गया।राजा गंगाधर राव को तो इतना गहरा धक्का पहुंचा कि वे फिर स्वस्थ न हो सके और २१नवंबर १८५३ को चल बसे। यद्यपि महाराजा का निधन महारानी के लिए असहनीय था, लेकिन फिर भी वे घबराई नहीं, उन्होंने विवेक नहीं खोया।
23 मार्च १८५८को झांसी का ऐतिहासिक युद्ध आरंभ हुआ। कुशल तोपची गुलाम गौस खां ने झांसी की रानी के आदेशानुसार तोपों के लक्ष्य साधकर ऐसे गोले फेंके कि पहली बार में ही अंगरेजी सेना के छक्के छूट गए।
रानी लक्ष्मीबाई ने सात दिन तक वीरतापूर्वक झांसी की सुरक्षा की और अपनी छोटी-सी सशस्त्र सेना से अंगरेजों का बड़ी बहादुरी से मुकाबला किया। रानी ने अपनी पूरी ताकत से शत्रु का सामना किया और युद्ध में अपनी वीरता का परिचय दिया। अकेले ही अपनी पीठ के पीछे दामोदर राव को कसकर घोड़े पर सवार हो, अंगरेजों से युद्ध करती रहीं। बहुत दिन तक युद्ध का क्रम इस प्रकार चलना असंभव था। सरदारों का आग्रह मानकर रानी ने कालपी प्रस्थान किया। वहां जाकर वे शांत नहीं बैठीं।
रानी ने ग्वालियर पर आक्रमण किया और वहां के किले पर अधिकार कर लिया। विजयोल्लास का उत्सव कई दिनों तक चलता रहा लेकिन रानी इसके विरुद्ध थीं। यह समय विजय का नहीं था, अपनी शक्ति को सुसंगठित कर अगला कदम बढ़ाने का था। रानी दूरदर्शी थी।
सेनापति सर ह्यूरोज अपनी सेना के साथ संपूर्ण शक्ति से रानी का पीछा करता रहा और आखिरकार वह दिन भी आ गया जब उसने ग्वालियर का किला घमासान युद्ध करके अपने कब्जे में ले लिया। रानी लक्ष्मीबाई इस युद्ध में भी अपनी कुशलता का परिचय देती रहीं। 18 जून 1858 को ग्वालियर का अंतिम युद्ध हुआ और रानी ने अपनी सेना का कुशल नेतृत्व किया। वे घायल हो गईं और अंततः उन्होंने वीरगति प्राप्त की। रानी लक्ष्मीबाई ने स्वातंत्र्य युद्ध में अपने जीवन की अंतिम आहूति देकर जनता जनार्दन को चेतना प्रदान की और स्वतंत्रता के लिए बलिदान का संदेश दिया।आज भी नारी गौरव उनसे सम्मानित महसूस करती हैं।उनके गजब के हौंसले को मेरा नमन।

Language: Hindi
Tag: लेख
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