शब्द कम नहीं पड़ेंगे !
शब्द कम नहीं पड़ेंगे !
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शब्द कम नहीं पड़ेंगे !
हम यूॅं ही लिखते रहेंगे !!
पुस्तकों से लगाव है मुझे इतना !
कि शब्दों में दिखता मुझे सपना !
दुनियाॅं में जो नाम है कुछ करना !
तो करना पड़ेगा साहित्य साधना !!
भावनाऍं उठ रही उफान होंगी !
शब्द-शक्ति ही जब पहचान होंगी !
हर पंक्ति जो सत्वगुण-प्रधान होंगी !
सृजित रचना में तभी कुछ जान होंगी !!
मेरे मन में इक भंडार है !
शब्दों का इक संसार है !
राज्य भाषा से इतना प्यार है !
तभी तो उमड़ते ये अल्फ़ाज़ हैं !!
शब्द कम नहीं पड़ेंगे !
हम यूॅं ही लिखते रहेंगे !!
साहित्य रूपी इस सागर में…
डुबकी जो थोड़ा लगाया हूॅं !
समय-समय पर लेखनी से !
कितनों का हिय लूट पाया हूॅं !!
साहित्य के इस सागर में…
अंदर तक डूब जाऊॅंगा !
गहराई में गोते लगाकर…
हीरे – मोती ले आऊॅंगा !!
हौसलों के उड़ान भरने होंगे !
आत्मविश्वास और बढ़ाने होंगे !
खोए हुए अरमानों को जगाके…
पंखों से सुसज्जित करने होंगे !!
शब्द कम नहीं पड़ेंगे !
हम यूॅं ही लिखते रहेंगे !!
केवल रटी – रटाई हो शब्द नहीं !
मन में भी जगाऍं कुछ शब्द नई !
पास-पड़ोस की हर चीज़ों में ही…
संसार काव्य का ढूंढ़ें सही-सही !!
फूल उपवन में जब तक खिलेंगे !
शब्द मेरे ख्वाबों में तब तक सजेंगे !
उन फूलों की खुशबू जहाॅं तक पहुॅंचेगी !
सुरभि रची रचना की वहाॅं तक बिखरेंगी !!
ईश्वर से इक छोटी सी प्रार्थना है !
कि कृपा अपनी सबपे बनाए रखें….
विशुद्ध लेखन तो साहित्य साधना है !
सही दिशा हम सबको दिखाते चलें !!
सही दिशा हम सबको दिखाते चलें !!
__स्वरचित एवं मौलिक ।
© अजित कुमार कर्ण ।
__ किशनगंज ( बिहार )