शब्द और उम्र
शब्द और उम्र
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शब्द या उम्र किसे जाया किया
कुछ शब्द थे गाहे बगाहे गिर पड़े
एक उम्र थी बस यू ही निकल बसी
ना शब्दों का मोल मिला न उम्र की तौल
सिर्फ जीरो हासिल हुआ, एक गोल मटोल ।
हर शब्द के मानी हो बेहद जरूरी तो नहीं
हर लम्हा हरा धानी हो , मौसम की मजबूरी तो नहीं
उम्र के गले में कभी कुछ अल्फाज अटक गए
तो अल्फाजों की बंदिश में उम्र कही भटक गई
ये खेल बहुत है अजीब सा
उम्र की सिलाई और शब्दों की बेतरतीब कमीज सा
उम्र की सिलवटों पर अल्फाजों की इस्त्री
या शब्दों की मरम्मत पर उम्र की तमीज सा
आसान या कि मुश्किल ये भी बड़ा सवाल है
उम्र और शब्दों के बीच , ये कैसा बवाल है
उम्र बढ़ती गई शब्द छुट्टा हो गए
पुरानी किताब पर धूल भरा पुट्ठा हो गए
उम्र के पीले पन्नो को समेटकर गोंद में
धुंधली सी, अधूरी सी, यादों का कच्चा चिट्ठा हो गए
कोई भी पढ़ेगा कोई इन्हें सुनेगा
एक कहानी समझकर
ये पीले धुंधले शब्द जायेंगे
बहुत कुछ कहकर ।
रचयिता
शेखर देशमुख
J 1104, अंतरिक्ष गोल्फ व्यू 2, सेक्टर 78
नोएडा (UP)