शब्दों का इश्तेहार
बदल दूँ रूप मिट्टी का ऐसा कलश्कार हूँ मैं
तेरे हुस्न का ऐसा तलबगार हूँ मैं
नहीं है कोई ख्वाहिश अब मुझे ए सनम सिवा तेरे
तेरे प्यार को पाने की चाहत में बेक़रार हूँ मैं
उठी है आज सीने में एक कसक दिल की
तेरे साथ में जीने का इन्तेजार हूँ मैं
नहीं हूँ मैं कोई कल बिता हुआ तेरा
तेरा आज हूँ अभी हूँ दिलदार हूँ मैं
बहुत सुना है मैंने गीतों को गाते हुए सबको
तेरी कोयल सी बोली का दीवाना हर बार हूँ मैं
मेरे इश्क का परवाज कुछ इस कदर हुआ
तन्हाई में बैठा अकेला बेजार हूँ मैं
तुझे पाने की अब तमन्ना है इस कदर
तेरे प्यार के शब्दों का इश्तेहार हूँ मैं
मेरी मंजिल भी तू है मेरी दुनिया भी तू है
मैं हूँ “राही” तेरा , तेरा पनाहगार हूँ मैं
– राहुल सोनी “राही”