शबरी दोहावली
********* शबरी दोहावली ************
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रामायण के पाठ में, है शबरी का नाम।
भील समुदाय जाति से,किये स्वर्णिम काम।।
श्रमणा अस्ल नाम था,जिससे सब अंजान।
शबर जाति से था पड़ा,शबरी मिला सम्मान।।
भील कुमार से तय था, शबरी का विवाह।
सौ पशु की बलि देख के,शबरी हुई सवाह।।
ब्याह पूर्व भाग गई, गई मातंग द्वार।
ऋषि मुनियों सेवा की,सो हो नैया पार।।
आश्रम नदी राह को,करती थी वो साफ।
काँटे चुन कर राह से,बिछाती रेत साफ।।
मातंग ऋषि ने दिया, शबरी को वरदान।
श्री राम जी प्रभु मिले,बात कही कर ध्यान।।
शबरी वृद्धा हो चली , कर बहुत इंतजार।
श्री राम कब दर्शन दें,सो हो बेड़ा पार।।
राम के लिए तोड़ती, रोज शबरी बेर।
चख कर मीठे छांटती,झूठे करती बेर।।
प्रभु राम जी आ गए,सुन कर हुई निहाल।
पहुंची वहाँ भागती ,हाल हुआ बेहाल।।
श्री राम हाथ पांव धो,बैठाया निज पास।
कोटि प्रसन्नता हुई, पूर्ण मुराद आस।।
निज हाथों देती रही, झूठे कर कर बेर।
प्रभु राम खाते रहे , मीठे मीठे बेर।।
लक्ष्मण ने खाए नहीं, शबरी के दिए बेर
बेर बनी बूटी खानी पड़ी,युद्ध में हुए ढ़ेर
श्रेष्ठ राम भक्त हुई, शबरी का है नाम।
जो जन भी गाथा सुने, पूर्ण होते काम।।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)