शबनम के दलदल में
शबनम के
दलदल में
रेशम के कीड़े से
उपज रहे हैं
मैं खुद के लिए
एक अजनबी बनती जा
रही हूं
मेरी जिन्दगी के हालात
मुझे किसी नाग से
डस रहे हैं
दर्पण में जब जब
खुद को देखती हूं तो
चेहरे पर दर्द की लकीरें
पाती हूं
यह दर्पण कब टूटेगा
इस इंतजार में मैं
पतझड़ में पेड़ से झड़
रहे
सूखे पत्तों की
जमीन से उठा उठाकर
एक एक कलियां
चुनती हूं।
मीनल
सुपुत्री श्री प्रमोद कुमार
इंडियन डाईकास्टिंग इंडस्ट्रीज
सासनी गेट, आगरा रोड
अलीगढ़ (उ.प्र.) – 202001