शत-शत नमन श्री केदारनाथ यजुर्वेदी “घट”
शत-शत नमन श्री केदारनाथ यजुर्वेदी “घट”
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लेखक : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश) मोबाइल 99976 15451
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श्री केदारनाथ यजुर्वेदी “घट” की मृत्यु का समाचार सुनकर मुझे बहुत दुख हुआ। बदायूं से जिन लोगों के कारण विशेष आत्मीयता का अनुभव हुआ ,उनमें एक महत्वपूर्ण नाम श्री केदारनाथ यजुर्वेदी “घट” का रहा ।
आप की कविताएं देशभक्ति की भावना से भरी होती थीं। राष्ट्रीयत्व को जगाने वाली तथा अपनी संस्कृति पर अभिमान करने वाली । आपकी कविताओं को पढ़कर ह्रदय प्रसन्न हो जाता था । विचारों के साथ-साथ गीतों की लयात्मकका देखते ही बनती थी। आपकी भावनाएं राष्ट्र को वैभव के शिखर पर ले जाने के लिए सदैव तत्पर रहती थीं। कोई भी विषय उपस्थित हो ,आप राष्ट्र को प्रथम सम्मुख रखकर ही उस पर विचार करते थे।
मेरा सौभाग्य रहा कि समय-समय पर मुझे अपनी रचनाओं पर आपका प्रोत्साहन-आशीष प्राप्त होता रहा । आपका लिखा हुआ एक पत्र मेरे पास आपकी अनूठी काव्य कला को जहां एक और प्रदर्शित कर रहा है, वहीं दूसरी ओर यह देशभक्ति के विचारों पर प्रोत्साहन की मोहर लगाने से भी पीछे नहीं हट रहा है । 1999 में मेरी काव्य पुस्तक सैनिक प्रकाशित हुई । कारगिल विजय के उपलक्ष्य में राष्ट्रीय भावनाओं का अभिनंदन करने के लिए यह पुस्तक मैंने लिखी थी । आपने एक सुंदर गीत के माध्यम से जो भाव व्यक्त किए ,उसे केवल प्रतिक्रिया कहकर छोटा नहीं किया जा सकता । यह वास्तव में एक प्रकार से मौलिक विचार तथा हृदय से स्फूर्त भावनाएं थीं, जो मुझे आशीर्वाद प्रदान करने के बहाने आपकी लेखनी से निःसृत हुईं। सहकारी युग हिंदी साप्ताहिक रामपुर उत्तर प्रदेश के प्रष्ठों पर आपकी लेखनी यत्र तत्र सर्वत्र खुशबू बिखेर रही है । आप की पावन स्मृति को नमन करते हुए आपका सैनिक पुस्तक के संदर्भ में भेजा गया पत्र पुनः उद्धृत कर रहा हूं:-
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श्री केदारनाथ यजुर्वेदी”घट”का आशीर्वाद
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( रवि प्रकाश द्वारा रचित सैनिक काव्य कृति पर)
धड़कन हिन्दुस्थान की
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रविप्रकाश जी की ‘सैनिक’ कृति थाती वीर जवान की
नहीं कारगिल की धड़कन यह, धड़कन हिन्दुस्थान की
(1)
प्रथम एक सौ आठ मोतियों की गूँथी माला है
जिसके द्वारा सैनिक का अभिनन्दन कर डाला है
धन्य लेखनी राष्ट्र प्रेम की धधका दी ज्वाला है
लगता है भारत अखण्ड फिर से होने वाला है
शीघ्र डूबने ही वाली है नइया पाकिस्तान की
नहीं कोरगिल की धड़कन यह, धडकन हिन्दुस्थान की
(2)
धन्य धन्य बलजीत सिंह सौंपे दस-दस अरि यम को
ग्राम ‘नवाबगंज’ के सूरज अखिल विश्व में चमको
रौंदो अस्ताचल तक अघ आतंकवाद के तम को
समर- यज्ञ में आहुति हित पुनि सीमा पर आ धमको
त्याग-प्रेम-बलिदान त्रिवेणी ‘रवि’ ने दिव्य प्रदान की
नहीं कारगिल की धड़कन यह, धड़कन हिन्दुस्थान की
(3)
सबक कारगिल का कहता है शक्ति साधना करके
देश भक्ति की ज्वाला जन-जन के तन-मन में भर के
युद्ध दे रहा तुम्हें चुनौती लड़ो वीर बे-डर के
शिव का खोलो नेत्र तीसरा नमन समर्पित करके
ऐसी है भावना परस्पर हर सरहदी जवान की
नहीं कारगिल की धड़कन यह, धड़कन हिन्दुस्थान की
(4)
जैसा भी है अपना भारत प्राणों से प्यारा है
इसका चप्पा-चप्पा सबकी आँखों का तारा है
इसको जब-जब मारा केवल अपनों ने मारा है
पढ़ देखो इतिहास बाहरी शत्रु सदा हारा है
मीर जाफरों, जयचन्दों की संकट में पहचान की
नहीं कारगिल की धड़कन यह, धड़कन हिन्दुस्थान की
(5)
कृषक और वैज्ञानिक लायें फिर से नव-खुशहाली
कवि की हो लेखनी समय पर आग उगलने वाली
सीमा पर गतिमान तोप, बम औ” संगीन दुनाली
हो न सके क्षणभर को धूमिल माँ के मुख की लाली
“घट’ ‘सैनिक’ यशवन्ती आहुति, विजय यज्ञ अभियान की
नहीं कारगिल की धड़कन यह, धड़कन हिन्दुस्थान की
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