शत् – शत् वन्दन
माते! तेरा शत् -शत् वन्दन।
तू ही जननी इस सृष्टि की,
तू जाया ममता- दृष्टि की;
तुझसे ही माॅं है यह जीवन,
माते! तेरा शत् -शत् वन्दन।
सबका आश्रय तेरा अंचल,
तू ही इस जगती का संबल;
तेरे आगे क्या है नंदन वन,
माते! तेरा शत्-शत् वन्दन।
तू शक्ति है, तू ही प्रज्ञा है,
नव आलोकमयी प्रभा है;
तुझसे पाते नव- पथ किरण,
माते! तेरा शत्- शत् वन्दन।
तू काव्य है, तू ही कथा है,
सबका दुख माँ तेरी व्यथा है;
तू है जग हेतु जीवन – धन,
माते! तेरा शत्-शत् वन्दन।
कोई चुका न सका तेरा ऋण,
हर प्रयत्न बन रह जाता तृण;
तुझे अर्पित श्रद्धामय तन-मन,
माते ! तेरा शत् – शत् वन्दन।
—प्रतिभा आर्य
अलवर (राजस्थान)