शतरंज सी है जिंदगी
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वो सभा बेहतरीन हुई जब ये सवाल उठा
कैसे जन्म से मृत्यु शतरंज सी है जिंदगी
मेरी घड़ी की सुई पाँच कला आगे थी
सौ वर्ष का जिवन है कब-कब बवाल उठा ।
सुबह उठ तो जानेगा तु पिछे छुट गया
दाव लगा एक कदम की बाजी खेल
क्या पता वो आसमाँ तेरे लिए झुक गया
देख पथ थमा है ये ,वजीर बन तू आगे बढ़ गया।
पथ अचानक मुड़ गया तू भटक गया
जित है तेरे सामने तू फिर हार गया
हार पर तूने अपना विशेष गुण पा लिया
राजा से प्यादे की तरह देखी तुने जिंदगी।
हर पड़ाव से तु बुढ़ापे मे आ गया
घड़ी मेरी पाँच कला अभी भी आगे है
पहली पंक्ति पर सवाल उठा,
बाकी तेरह पर जवाब उठा
इस तरह मै भी एक बाजी खो गया।
ये अतरंग सा जिवन है-जिंदगी खेल शतरंज हो गया।
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शक्ति