राज
रचना का विषय : राज़
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राज़ हम मन भावों में रखते है
बस तुझे कहने से हम डरते हैं
मन तेरे संग सदा ही रहता है
हम चाहत के पन्ने लिखते है
जीवन के रंगमंच में राज छुपाते हैं
तेरे इश्क़ का राज इजहार न करते हैं।
बस दिल में तुझे चाह बनाकर बैठे हैं।
मृगतृष्णा जीवन के राज रुप में रहती है।
राज हम सभी के सच होते है।
हम दिल के राज कहने से बचते है।
राज़ तो जीवन के संग साथ हम सभी की हकीकत कहते है।।
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नीरज अग्रवाल चंदौसी उप्र