शख़्स!
उस दौर का कुछ अलग ही आलम था
हुजूम में घिरा शख़्स तन्हाई चाहता था!
अब तन्हाई है मगर अलग ही आलम है
अब तो वो उकताया हुजूम तलाशता है!
तनहाइयों से देखो कैसा पाला पड़ा है
हर शख़्स का ही फ़िक्र दोबाला पड़ा है!
वो अकेला तनहाई में घुट के मर रहा है
उसने दूसरों से मिलना ही टाला पड़ा है!
जिन बातों से उकता ही जाता था कभी
उनके लिए ही ये दिल मतवाला बड़ा है!
कोई वक्त था मन की बातें कह लेते थे
अब तो बस ज़ुबानों पे ताला ही पड़ा है!
तब तो चाहत का अलग ही आलम था
अब तो वो दूर आशियाना तलाशता है!
इस दौर में भी कुछ अलग ही आलम है
हर शख़्स ख़ामोश ही रहना चाहता है!