#शख़्सियत…
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■ सबसे बेहतर “डिबेट शो”
★ न्यूज़-24 पर संदीप चौधरी
【प्रणय प्रभात】
“तिल का ताड़” व “राई का पहाड़” बनाने और दिन-रात बेमतलब का कोहराम मचाने वाले चैनलों की देश में भरमार है। जिनमें “गला-फाड़” और “गुर्दा-फोड़” एंकरों की भारी भीड़ है। जिनका काम है 24 घण्टे टीआरपी के चक्कर में बेतुके मुद्दों पर “बहस” कराना। साथ ही सार-हीन संवाद को जबरन उत्तेजक बना कर बेहूदा लोगों को महिमा-मंडित करना। दलीय प्रवक्ता और राजनैतिक विश्लेषक के नाम पर फूहड़ता फैलाने और अपमानित होने के आदी दोयम दर्ज़े के सियासी कारकूनों से माथा-पच्ची कर दर्शकों का भेजा फ्राई करना और तर्क सुने बिना कुतर्क पर आमादा हो जाना। पूरी बात सुने बिना अपनी-अपनी थोपना और तयशुदा एजेंडा के तहत अपने एकपक्षीय और पालित-पोषित होने का सुबूत ख़ुद पेश कर देना।
अपने बड़बोलेपन और अधकचरा तथ्यों के सहारे पूर्वाग्रही अंदाज़ में ज़ुबानी जंग करना और अपनी गली (स्टूडियो) में अपनी पूंछ को खड़ा करके अपने आपको शेर या शेरनी साबित करना। दुम दबाने वाले छुटभैयों पर दहाड़ना और पलट कर गुर्राने वालों के आगे मिमियाना। कुल मिला कर नूरा-कुश्ती के अंदाज़ में अपना और जनता का टाइम खोटा करना। अलगाव और उन्माद के संवाहकों को झूठे तमगे देकर पैनलिस्ट बनाना और फ़ालतू के मुद्दे पर एक अंतहीन हो-हल्ले को जन्म देना। बड़े और कड़े मसलों की भ्रूण-हत्या करना और मनचाहे मोड़ पर कहानी को अधूरा छोड़ कर अगले ताने-बाने बुनने में उलझ जाना। जी हां, यही है “चैनली डिबेट्स” का सार। जो समस्या का निदान बन पाने के बजाय ख़ुद एक समस्या की वजह बन गई हैं।
इस बेहूदगी और लफ़्फ़ाज़ी के बीच एक होस्ट है, जिसका अपना एक मिज़ाज और मर्तबा है। जो अपने स्वाध्याय, विशद ज्ञान, धीर-गंभीर स्वभाव, बेबाक अंदाज़ और तार्किकता के बलबूते एक अलग रुतबा रखता है। ना फूहड़ बात करता है, ना बेहूदगी का मौका देता है। समयोचित मुद्दे पर सारगर्भित व समालोचनात्मक संवाद करने वाले इस एंकर का नाम है “संदीप चौधरी।” न्यूज़-24 पर बहस के अपने कार्यक्रम “सबसे बड़ा सवाल” में बिना किसी दुराग्रह के निष्पक्ष रुख बनाए रखना संदीप चौधरी की एक ख़ासियत है, जो उन्हें औरों से पूरी तरह अलग बनाती है। बहस के हर कार्यक्रम में उनके तेवर और कलेवर का लोहा आमंत्रित लोग भी मानते हैं। बहस को निर्णायक मोड़ या चिंतन-बिंदु तक ले जाने में उनकी अध्ययनशीलता, जानकारी व निर्भीकता बड़ी भूमिका अदा करती है। सत्ता पक्ष और विपक्ष के नुनाइंदों के साथ उनका समान बर्ताव उनकी निष्पक्षता का एक प्रत्यक्ष प्रमाण है।
उनकी सबसे अच्छी बात अपने काम में स्वाभाविक नवाचार अपनाने की कोशिश है। जो उनका साहस साबित करती है। मिसाल बीते शनिवार की शाम मिली, जब “मणिपुर हिंसा” जैसे संवेदनशील विषय पर आयोजित बहस में श्री चौधरी ने किसी भी नेता को नहीं बुलाया और व्यापक चर्चा रिटायर्ड सैन्य अधिकारियों व क्षेत्रीय जानकारों सहित विशेषज्ञ व मैदानी पत्रकारों के साथ की। जो अत्यंत सार्थक रही। सूट-बूट, मेकअप, टाई और दिखावटी चमक-दमक से दूर संदीप किस हद तक ज़मीनी हैं, इसका अंदाज़ा उनका व्यक्तित्व देता है। जो उनकी असाधारण योग्यता व दक्षता की तुलना में बेहद साधारण सा प्रतीत होता है।
अपने बहस के कार्यक्रम में नेता-नगरी के बजाय वास्तविक विशेषज्ञों व जानकारों को तरज़ीह देने वाले संदीप चौधरी का बहस कार्यक्रम तनाव पैदा नहीं करता। एक छुपे हुए सच को सामने लाने का प्रयास करते हुए समाधान सुझाता है। साथ ही यह भरोसा भी दिलाता है कि पत्रकारिता के क्षेत्र में अब भी कोई आवाज़ है जो बिकी नहीं है। अब भी कोई है जिसने सत्ता के दरबार में मुजरा या कोर्निश न करने के अपने संकल्प को संक्रमण की आंधी के बीच बचाए रखा है। संतोष की बात है कि “राजनीति की वैशाली” बन चुके देश में “नगर वधु” बनती जा रही मीडिया-बिरादरी में संदीप चौधरी जैसे गिने-चुने कैरेक्टर हैं जो अपने कैरेक्टर को सलामत रखे हुए हैं और अपनी आबरू समझौतावाद के हवाले करने के कतई मूड में नहीं है। कम से कम हाल-फ़िलहाल। अब आगे की राम जाने।।
●संपादक/न्यूज़&व्यूज़●
श्योपुर (मध्यप्रदेश)