शक्ति – पुँज
धन -धान्य संपदा यौवन
जिनके भूतल में समाये
जन्मभूमि के रक्षक जिनने
अनेकों प्राण गवाये।
जिनके आत्म- शक्ति धैर्य से
अगणित अरि का दमन हुआ
देखा जग अकूत शौर्य
तप, त्याग, तेज का नमन हुआ।
जिनके भीषण संघर्ष विशाल में
असंख्य अनेक लुप्त विलीन
लाखों गौरव को खोकर भी
रह न सके हा! हम स्वाधीन।
जन्मदात्री धायी के प्रहरी;
साहस, राष्ट्रगौरव की बात
विद्रोही, विप्लवकारी बना
हम किये कितना दुःखद व्याघात।
किसको इच्छा होती बन
बाधित, बेबस, विकल लवलीन
अनन्य प्रेम की आकांक्षा सबको
मधुर प्यार युक्त तल्लीन।
उठो राष्ट्र के शक्ति-पुंज
लौटा अपना गौरव सम्मान
दूर करो अविवेकी जन की
कायरता, मिथ्या अभिमान।
जय हिन्द!
© कवि आलोक पान्डेय